सच सामने आना अभी बाकी है - 1 Kishanlal Sharma द्वारा कुछ भी में हिंदी पीडीएफ

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सच सामने आना अभी बाकी है - 1

ईस्ट इंडिया कम्पनी की स्थापना 31 दिसम्बर 1600 में इंग्लैंड में हुई थी।यह कम्पनी भारत मे व्यापार करना चाहती थी।इस कम्पनी को भारत के साथ व्यापार करने की 21 वर्ष के लिए छूट महारानी ने दी थी।फ्रांस की कम्पनी भी भारत मे व्यापार कर रही थी।कालांतर में ब्रिट्रेन और फ्रांस की व्यापारिक कम्पनियों में भारत मे आधिपत्य के लिए संघर्ष होने लगा।
ब्रिटेन की कम्पनी आयी तो थी भारत मे व्यापार करने के लिए लेकिन छल बल से सन 1757 में बंगाल के शासक सिराजुदौला को लार्ड क्लाइव ने युद्ध मे हराकर भारत मे अंग्रेजी राज की नींव डाली।इस युद्ध को जो ईस्ट इंडिया कम्पनी और बंगाल के राजा के बीच लड़ा गया को प्लासी का युद्ध भी कहा जाता है।
सिराजुदौला के हारने के बाद अंग्रेजो ने उसके खजाने से लाखों चांदी के रु लुटे थे।इन लूट के रुपयों को ईस्ट इंडिया कम्पनी और सिपाहियों के बीच बांटा गया।इन सिपाहियों में अंग्रेज और भारतीय दोनो थे।अंग्रेजी सिपाहियों के मुकाबले भारतीय सिपाहियों को कम धन मिला था।भारतीय सिपाही फिर भी खुश थे।कम धन मिलने पर भी संतुष्ट थे।पर अंग्रेज सिपाही खुश नही थे क्योंकि अंग्रेज अफसरों को ज्यादा धन मिला था।और असन्तुष्ट होने पर अंग्रेज सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। सििपाहियों के इस तरह विद्रोह करने को गदर कहते है।
सन 1857 में भारत मे जो कुछ हुआ,वो गदर था या जनविद्रोह?जिसकी परिणीति सन 1857 में सशस्त्र सं संघर्ष के रूप में हुई थी।यह आज 165 साल गुजर जाने के बाद भी विवाद का विषय है।इस विवाद का श्रेय अंग्रेज शासकों और इतिहासकारों को जाता है।
अंग्रेज सरकार की वयाखया के अनुसार सन 1857 का विद्रोह बंगाल की भारतीय सेना का विद्रोह मात्र था।जो कई कारणों से कम्पनी के रैवये को लेकर छुब्ध थे। 19वी सदी अधिकतर अंग्रेज इतिहासकारों ने इसी व्यख्या को तथ्यों के आधार पर विस्तृत विवेचन करने का प्रयास किया है।ये सारे तथ्य वे है जिन्हें अंग्रेजी सेना के अधिकारियों और अंग्रेज नोकरशाह ने अपने विवरण और व्यक्ततव्यों में छोड़ा है।इसमें भारतीय पक्ष का कोई भी तथ्य शामिल नही है।
सन 1857 और 1858 के दौरान अंग्रेजो के पाशविक प्रतिशोध से जन्मे आतंक ने भारतीयों के होंठ सील दिए।इस आतंक को झेलने या सामना करने का साहस किसी भी भारतीय शिक्षित ने नही दिखाया।एक दो विवरण दिए भी गए,उन विवरणों का उद्देश्य विदेशी प्रभुओं का कृपापात्र बनना था।ग़ालिब की डायरी इसका उदाहरण है।
अंग्रेज इतिहासकारों और अफसरों ने जनसाधारण यानी आम जनता की उपस्थिति को पूरी तरह नकार दिया है।साम्राज्यवादी इतिहास दृष्टि की विस्तृत अभिव्यक्ति--टी राइस होम्स की पुस्तक"हिस्ट्री ऑफ इंडियन मयूटिनी"मे हुई है।
विलियम मयूर का भी विश्वास था कि 1857 का विद्रोह सरकार और सैनिकों के बीच संघर्ष था।जनता और सरकार के बीच नही।अलेक्जेंडर डफ ने भी अपने इतिहासग्रन्थ मे भी सरकारी व्यख्या का प्रतिपादन किया है।
जान के ने,"हिस्ट्री ऑफ सिपाय वार"में 1857 को केवल सेनिक विद्रोह घोषित करने वालो के सामने कुछ चूनोतियो भरे प्रश्न खड़े कर दिए है।उसने 1857 को ब्राह्मणों के प्रतिरोध के रूप में देखा है।उसकी नजर में इस विद्रोह के पीछे कोई राजनेतिक या आर्थिक पक्ष नही था।
मोलिसन ने,"the mutiny of the Bengal army." में इसे केवल सैनिक विद्रोह की संज्ञा देने के लिए तैयार नही है।